फैसिलिटेशन: सफलता के लिए रणनीतियाँ
फैसिलिटेशन टूल्स और मेथड का एक ऐसा ग्रुप है, जो आपको ग्रुप में मुद्दों की चर्चा को प्रभावी ढंग से व्यवस्थित करने में मदद करता है। इसका शाब्दिक अर्थ ही “प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाना है”, क्योंकि फैसिलिटेटर चर्चा को मॉडरेट करता है, अपने प्रतिभागियों को प्रोडक्टिव बने रहने में मदद करता है, बातचीत की प्रगति पर नज़र रखता है। फैसिलिटेशन का उपयोग अक्सर शिक्षा और मनोविज्ञान के क्षेत्र में किया जाता है, हालांकि शब्द का अर्थ यह है कि फैसिलिटेशन टेक्नोलॉजी का उपयोग शिक्षाशास्त्र में, जॉर्नलिस्ट की मीटिंग में, ब्रेनस्टॉर्म के दौरान और बोर्ड्स ऑफ़ डायरेक्टर की मीटिंग्स में भी किया जाता है।
पहली बार सन 1965 में फैसिलिटेशन के बारे में बातें शुरू हुई, जब अमेरिकी मनोवैज्ञानिक रॉबर्ट ज़ायोंट्स ने कॉकरोचों के साथ एक प्रयोग किया। रिसर्च से पता चला, कि जब कॉकरोचों को जोड़े में रखा जाता है और वे अन्य कॉकरोचों की देखरेख में होते है, तो वे आसान लेबिरिंथ को बेहतर ढंग से नेविगेट करते हैं। लेकिन मुश्किल लेबिरिंथ को कॉकरोचों ने अकेले और बिना किसी निगरानी के ज्यादा अच्छे से पार किया। इस “मोडरेशन इफेक्ट” में मनोवैज्ञानिक को दिलचस्पी हुई, जिसके परिणामस्वरूप उन्होंने कई और प्रयोग किए और पाया कि मोडरेशन लोगों को कुछ इसी तरह प्रभावित करता है। इस प्रकार सोशल फैसिलिटेशन की शुरुआत हुई: रॉबर्ट ने महसूस किया कि कार्य की परिस्थितियाँ इसकी क्वालिटी को प्रभावित करती हैं। बीसवीं सदी के 80 के दशक में, इस सिद्धांत को शिक्षा के क्षेत्र में पेश किया गया था, और उसके बाद ही बिज़नेस के क्षेत्र में इसका इस्तेमाल किया गया।
आज, मीटिंग्स फैसिलिटेशन, ज़ाहिर है, कॉकरोचों के बारे में नहीं है। यह नियमों को जानने के बारे में है, और प्रक्रिया में सभी प्रतिभागियों के प्रति एकदम सकारात्मक दृष्टिकोण के बारे में है, और ट्यून किये गये ऑप्टिक्स और टूल्स के बारे में है।
- टाइम मैनेजमेंट– चर्चा को समय सीमा के अंतर्गत पूरा करने के लिए टाइम मैनेजमेंट जरूरी है।
- सक्रिय रूप से सुनना – इसके बिना, फैसिलिटेटर सत्रों को सफलतापूर्वक मॉडरेट नहीं कर पाएगा। यह कौशल सहानुभूति कौशल के अंतर्गत आता है। आपको आई-कॉन्टैक्ट बनाए रखना है, तनावमुक्त और स्वाभाविक रहना है, साथ ही सतर्क रहना है और व्यक्त विचारों का मूल्यांकन करने से बचना है। एक ऐसे व्यक्ति के लिए यह मुश्किल होगा जो जल्दी से बोलना चाहता है, क्योंकि अन्य बातों के अलावा फैसिलिटेटर की भूमिका, बातचीत या मोनोलोग में हस्तक्षेप ना करने में निहित है।
- सवाल पूछने की क्षमता – यदि फैसिलिटेटर चर्चा में भाग लेने वालों से कुछ भी पूछने, उनको रोकने और बातों को स्पष्ट करने से डरता है, तो चर्चा का नतीजा उस क्वालिटी का नहीं होगा, जिसे कोई देखना चाहेगा। सवाल ऐसे होने चाहिए कि उनका जवाब एक शब्द “हाँ” या “नहीं” में नहीं दिया जा सके।
- निष्पक्षता– फैसिलिटेटर बातचीत के विषय से जितना दूर होगा, उतना ही अच्छा होगा। निष्पक्ष रहना और आलोचनात्मक आंकलन न करना महत्वपूर्ण है।
- अनुकूलता– बातचीत में भाग लेने वालों के अलग-अलग व्यक्तित्वों और उनकी प्रेरणाओं के कारण बातचीत का योजना के अनुसार न होने की संभावना है, इसलिए यह जरूरी है कि फैसिलिटेटर किसी भी परिस्थिति के अनुकूल होने में सक्षम हो। आप पहले से कई मीटिंग सेनारियो बना सकते हैं, ताकि अगर कुछ योजना के अनुसार न चले, तो आप भ्रमित न हों।
- बातचीत करने की क्षमता– आपको अलग-अलग लोगों के साथ बातचीत करना होगा, इसलिए कम्युनिकेशन स्किल (और जल्दी अपना आपा न खोने की क्षमता) आपके काम आएगा। वैसे, इसमें नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन का उपयोग करने की क्षमता भी शामिल है: इशारे और मूवमेंट, चेहरे के भाव। और ऐसा माहौल बनाने की क्षमता जिसमें प्रतिभागियों को चर्चा प्रक्रिया में शामिल किया जाता है, यह भी फैसिलिटेटर कम्युनिकेशन की क्षमता के अंतर्गत आता है।
- बातचीत की गतिशीलता को समझना– इस क्वालिटी की ज़रूरत ग्रुप में असमानताओं को दूर करने और भूमिकाओं को एक समान करने में पड़ेगी। ग्रुप की ऊर्जा की सराहना करना और इसे बनाए रखना सीखना आवश्यक है, चाहे यह कितना भी अजीब क्यों न लगे। आपको ऊर्जा के लेवल को कम करने या इसे बढ़ाने में सक्षम होना चाहिये, जिसके लिए ट्रेनिंग और प्रैक्टिस की ज़रूरत होती है।