बलरामपुर चीनी मिल्स: प्रमुख निवेशों के माध्यम से दक्षता और सततता में सुधार

Mohit Srivastava (KMVS)

अगस्त, 2024 |

बलरामपुर चीनी मिल्स (बीसीएमएल), जो दक्षता बढ़ाने के लिए डिजिटलीकरण और स्वचालन पर बड़ा दांव लगा रही है, जिससे “सुरक्षित और अधिक लाभदायक संचालन” हो सके, इस साल अधिक गन्ना पेराई और इथेनॉल उत्पादन के कारण कारोबार में अच्छी वृद्धि की उम्मीद कर रही है। 2022-23 में 93.66 लाख टन गन्ने की पेराई करने वाली कंपनी को 2023-24 में पेराई में करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी की उम्मीद है।

कोलकाता मुख्यालय वाली बीसीएमएल उत्तरप्रदेश के कुंभी में अपनी इकाई के विस्तार पर इसवित्त वर्ष में करीब 1,00 करोड़ रुपये का निवेश करने की योजना बना रही है, ताकि इसकी उत्पादन क्षमता को मौजूदा 8,000 टीसीडी से बढ़ाकर 10,000 टन गन्ना प्रतिदिन (टीसीडी) किया जा सके।

कंपनी के अनुसार, कंपनी ने पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान उत्पादन बढ़ाने पर करीब 1,000 करोड़ रुपये खर्च किए थे और पूंजीगत व्यय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा स्वचालन और इसकी दो इकाइयों में परिचालन में सुरक्षा बढ़ाने पर खर्च किया गया, जिससे गन्ना पेराई में उच्च दक्षता और अधिक स्थिरता आई।

हम गन्ने की किस्म, रोगसुरक्षा, सर्वोत्तमकृषि पद्धतियों को लागू करने के लिए बहुत काम कर रहे हैं, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि यह किसानों तक पहुंचे और उनकी उपज और लाभप्रदता बढ़े। उपज में वृद्धि का मतलब है अधिक आपूर्ति (मेरे लिए) और अगर गन्ने की अच्छी तरह से देखभाल की जाती है तो अधिक वसूली होती है… इसलिए मूलरूप से यह एक जीत वाली स्थिति है।

हालांकि इस वर्ष के दौरान कुल चीनी उत्पादन पर टिप्पणी करना अभी भी जल्दबाजी होगी, लेकिन चालू सीजन 2023-24 के दौरान देश का चीनी उत्पादन 32-34 मिलियन के करीब होने की संभावना है, जो पिछले साल के स्तर के लगभग समान है।

टिकाऊ संचालन

कंपनी के अनुसार बीसीएमएल ने अपनी कुछ इकाइयों में भूजल दोहन को सफलता पूर्वक  शून्य कर दिया है और व्यापक वृक्षारोपण के माध्यम से हरित क्षेत्र को बढ़ाया है। कंपनी ने तीन वर्षों में लगभग  2,50,000 पेड़ लगाए हैं और अगले पांच वर्षों में 10,00,000 पेड़ लगाने का इरादा रखतीहै।

पिछले पांच वर्षों के दौरान कंपनी के गैर-खतरनाक अपशिष्ट में लगभग 10 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि जल उत्सर्जन में 24 प्रतिशत की कमी आई है। इसके अलावा, कुल उत्पादित बिजली के प्रतिशत के रूप में कंपनी की अक्षय ऊर्जा की कैप्टिव खपत में वृद्धि हुई है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर इसकी निर्भरता कम हुई है।

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